पूर्व मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति
– फोटो : amar ujala
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हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने तीन सितंबर को प्रजापति को अंतरिम जमानत दी थी। प्रजापति उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार में मंत्री थे। अदालत से जमानत के बावजूद प्रजापति धोखाधड़ी के एक नए मामले की वजह से जेल में ही थे।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के कथन का संज्ञान लिया और प्रजापति की जमानत के आदेश पर रोक लगा दी। पीठ ने इसके साथ ही आरोपी प्रजापति से अपील पर जवाब मांगा है।
राज्य सरकार ने अपनी अपील में कहा है कि उच्च न्यायालय ने पॉक्सो मामले में आरोपी को गलत तरीके से मेडिकल आधार पर दो महीने की जमानत प्रदान कर दी लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज किया कि आरोपी का लगातार प्रतिष्ठित केजीएमसी और संजय गांधी पीजीआई में इलाज चल रहा था। यही नहीं, आरोपी की मुख्य जमानत याचिका 28 सितंबर के लिए सूचीबद्ध थी।
राज्य सरकार ने कहा कि आरोपी पूर्ववर्ती सरकार में महत्वपूर्ण मंत्री था और सत्ता के गलियारे में उसका काफी प्रभाव है। अपील में कहा गया है कि आरोपी की राजनीतिक हैसियत का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की जा सकी थी।
हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा था कि पूर्व मंत्री को कोविड-19 से वास्तव में खतरा है और डाक्टरों ने उन्हें सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में उपचार कराने की सलाह दी है, क्योंकि वह कई बीमारियों से ग्रस्त है।
प्रजापति 15 मार्च 2017 से जेल में हैं और इस समय तमाम बीमारियों के लिए केजी मेडिकल कॉलेज में उनका इलाज चल रहा है। प्रजापति और अन्य पर एक महिला से दुष्कर्म करने और उसकी नाबालिग बेटी की लज्जा भंग करने का प्रयास करने का आरोप है।
इस मामले में गौतमपल्ली थाने में 2017 में दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया था। इस मामले मे बाद में 15 मार्च, 2017 को प्रजापति को गिरफ्तार किया गया था। प्रजापति को इससे पहले सत्र अदालत ने इस मामले में जमानत दी थी, जिसे हाईकोर्ट ने उसकी रिहाई से पहले ही रद्द कर दिया था।
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